कुरआन में नाज़िल होने वाली सबसे पहली आयत “इक़रा बिस्मि रब्बिकल्लज़ी ख़लक़” में ‘इक़रा’ का मतलब क्या है?

जब अल्लाह तआला का पहला वह्य जिब्रील अमीन के ज़रिए नबी-ए-आखिर ﷺ पर उतरा, तो उसकी पहली ही आयत ने इंसानियत को ज्ञान, विज्ञान और तरक्की का वो रास्ता दिखाया, जो आज तक जारी है। ये आयत एक ऐसे शब्द से शुरू होती है जो पूरी मानव सभ्यता के लिए एक संदेश बन गया। आइए जानते हैं उस अहम शब्द के बारे में।

सवाल: कुरआन में नाज़िल होने वाली सबसे पहली आयत “इक़रा बिस्मि रब्बिकल्लज़ी ख़लक़” में ‘इक़रा’ का मतलब क्या है?

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सही जवाब है: ऑप्शन A , पढ़िए

तफ़सील (विवरण):

दलील:

इस अहम आयत का स्पष्ट वर्णन पवित्र कुरआन की सूरह अल-अलक़ की पहली आयत में है:

“اقْرَأْ بِاسْمِ رَبِّكَ الَّذِي خَلَقَ”
“पढ़िए अपने रब के नाम से, जिसने (सब कुछ) पैदा किया।”
📕 सूरह अल-अलक़ (96:1)

यह आयत स्पष्ट रूप से “इक़रा” शब्द से शुरू होती है, जिसका सीधा और स्पष्ट अर्थ अरबी और हिंदी दोनों में “पढ़ो” या “पढ़िए” है। यह एक आदेश है। यह सिर्फ किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि ब्रह्मांड की हर चीज़ को ‘पढ़ने’ यानी समझने, शोध करने और जानने का संदेश देता है। अल्लाह ने सबसे पहले ज्ञान के द्वार को खोलने के लिए ही “पढ़ने” का आदेश दिया।

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