जो मुसलमान खाने-पीने की चीज़ों को ज़खीरा बनाकर रखता है, अल्लाह उस पर कौनसा अज़ाब नाज़िल करता है?

इस्लाम ने हमेशा इंसानियत और भाईचारे को बढ़ावा दिया है। यही कारण है कि यह समाज में फैलने वाली हर बुराई पर सख्त रुख रखता है। ऐसी ही एक बुराई है ज़रूरतमंदों को नज़रअंदाज़ करके सामान जमाखोरी करना। यह अमल न सिर्फ समाज के लिए नुकसानदेह है, बल्कि इसके करने वाले के लिए दुनिया और आखिरत में गंभीर नतीजे हैं।

सवाल: जो मुसलमान खाने-पीने की चीज़ों को ज़खीरा बनाकर रखता है, अल्लाह उस पर कौनसा अज़ाब नाज़िल करता है?

  • A. गुस्से का मर्ज़ और मुफलिसी
  • B. दोज़ख का खाना ‘ज़क़्क़ूम’ खिलाया जाएगा
  • C. अंधा बनाकर उठाया जाएगा
  • D. पुल सिरात पर रोका जाएगा

सही जवाब है: ऑप्शन A , गुस्से का मर्ज़ और मुफलिसी

तफ़सील (विवरण):

दलील:

इस गंभीर चेतावनी का वर्णन हज़रत उमर बिन खत्ताब (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत एक हसन हदीस में मिलता है। रसूलअल्लाह ﷺ ने फरमाया:

“जो मुसलमानों के खाने-पीने की चीज़ों को ज़खीरा बनाकर रखता है, अल्लाह उसको गुस्से के मर्ज़ और मुफलिसी में मुब्तला फरमाता है।”
📖 सुनन इब्न माजा, जिल्द 2, हदीस 312 (हसन)

संक्षेप में समझें:

  • गुनाह: मुसलमान भाइयों की जरूरत की चीजें (खाना-पीना) जमा करके रखना और बाजार में कृत्रिम कमी पैदा करके महंगाई बढ़ाना।
  • दुनिया में सज़ा: अल्लाह ऐसे व्यक्ति को दो सज़ाएँ देता है:
    1. कोढ़ का मर्ज़: यह एक ऐसी बीमारी है जो शरीर को नुकसान पहुँचाती है और अक्सर समाज से अलग-थलग कर देती है, जैसे कि उसने समाज के ज़रूरतमंदों को अलग-थलग कर दिया था।
    2. मुफलिसी (कंगाली): उसका जमा किया हुआ धन उसे कोई फायदा नहीं देगा और वह आर्थिक तंगी में घिर जाएगा।
  • सीख: इस हदीस से यह स्पष्ट शिक्षा मिलती है कि मुसलमान को चाहिए कि वह दूसरों के हकों का ख्याल रखे, भाईचारे को मजबूत करे और लोभ-लालच में पड़कर समाज को नुकसान न पहुँचाए। अल्लाह की नेमतों को बांटना ही असली बरकत का रास्ता है।

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