हमारे हर हफ्ते में कुछ ऐसे दिन आते हैं जिनका इस्लाम में विशेष महत्व बताया गया है। इनमें से दो दिन ऐसे हैं जो हमें एक बहुत बड़ी रहमत और माफी का मौका देते हैं। यह दिन सीधे तौर पर हमारे अमल पेश होने और अल्लाह की रहमत के फैलने का दिन है। आइए जानते हैं इन खास दो दिनों के बारे में।
सवाल: हर हफ्ते 2 दिन जन्नत के दरवाज़े खोले जाते हैं और उन सबकी मगफ़िरत हो जाती है जो शिर्क न करते हों और अपने भाई के खिलाफ़ कीना न रखते हों, वो 2 दिन कौनसे हैं?
- A. जुमा और एतवार
- B. पीर और जुमेरात
- C. जुमा और सनिचर
- D. जुमेरात और जुमा
सही जवाब है: ऑप्शन B , पीर और जुमेरात
तफ़सील (विवरण):
दलील:
इस विशेष फ़ज़ीलत का वर्णन हज़रत अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत एक सहीह हदीस में मिलता है। रसूलअल्लाह ﷺ ने फरमाया:
“जन्नत के दरवाज़े सोमवार और गुरुवार के दिन खोले जाते हैं, फिर हर उस बंदे की मग़फ़िरत होती है जो अल्लाह तआला के साथ शिर्क नहीं करता, सिवाय उस शख्स के जो कीना रखता है अपने भाई से (उसकी मग़फ़िरत नहीं होती)। और हुक्म होता है: इन दोनों को देखते रहो जब तक कि मिल जाए, इन दोनों को देखते रहो जब तक कि मिल जाए, इन दोनों को देखते रहो जब तक कि मिल जाए।”
📕 सहीह मुस्लिम, जिल्द 6, हदीस 6544
संक्षेप में समझें:
- दिन: सोमवार और गुरुवार। इन दो दिनों में अल्लाह की विशेष रहमत बरसती है और जन्नत के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं।
- माफी का दायरा: इन दिनों हर उस इंसान के गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं, जो अल्लाह के साथ शिर्क (साझीदार ठहराना) नहीं करता।
- बड़ी रुकावट: लेकिन एक गुनाह ऐसा है जो इस माफी में रुकावट बन जाता है – वह है अपने मुस्लिम भाई के दिल में दुश्मनी या बैर (कीना) रखना। ऐसे व्यक्ति की माफी रोक दी जाती है और फरिश्तों को हुक्म दिया जाता है कि वे इन दोनों (झगड़ा करने वालों) को देखते रहें जब तक कि वे आपस में माफी माँगकर न मिल जाएँ।



