हम अक्सर नमाज़ अकेले पढ़ लेते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि अगर सिर्फ एक और व्यक्ति को साथ लेकर जमात बना ली जाए, तो उसका सवाब कितना बढ़ जाता है? इस्लाम में जमात से नमाज़ पढ़ने पर बहुत ज़ोर दिया गया है और इसके लिए बहुत बड़ा इनाम बताया गया है, भले ही जमात में सिर्फ दो ही लोग क्यों न हों। पैगंबर मुहम्मद ﷺ ने इसके फ़ज़ीलत को बहुत ही खास तरीके से समझाया है।
सवाल: दो आदमियों की नमाज़ के उनमें एक इमामत करवाए तो अल्लाह सुब्हानहु के नज़दीक तन्हा पढ़ी जाने वाली कितनी नमाज़ों से बेहतर है?
- A. 8
- B. 25
- C. 40
- D. 100
सही जवाब है: ऑप्शन A , 8
तफ़सील (विवरण):
दलील:
इस अद्भुत फ़ज़ीलत का वर्णन हज़रत क़बास बिन आशिम (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत एक सहीह हदीस में मिलता है। रसूलअल्लाह ﷺ ने फरमाया:
“दो आदमियों की नमाज़ के उनमें एक इमामत करवाए, अल्लाह सुब्हानहु के नज़दीक तन्हा पढ़ी जाने वाली आठ (8) नमाज़ों से बेहतर है। और चार आदमियों की नमाज़ के उनमें से एक शख्स इमामत करवाए, अल्लाह सुब्हानहु के नज़दीक उन सौ (100) नमाज़ों से बेहतर है जो तन्हा पढ़ी जाए।”
📖 अल-सिलसिला अस-सहीहा, हदीस 629
संक्षेप में समझें:
- जमात का महत्व: यह हदीस जमात से नमाज़ पढ़ने की अहमियत को बहुत बड़े अंकों में बयान करती है।
- दो लोगों की जमात: अगर केवल दो लोग भी मिलकर नमाज़ पढ़ें (एक इमाम बने और एक मुक़्तदी), तो यह नमाज़ अकेले पढ़ी गई 8 नमाज़ों से बेहतर हो जाती है। यानी सवाब में 8 गुना से भी ज्यादा बढ़ोतरी।
- चार लोगों की जमात: और अगर चार लोग जमात बनाएँ, तो यह अकेले पढ़ी गई 100 नमाज़ों से बेहतर है। यानी सवाब में 100 गुना से भी ज्यादा बढ़ोतरी।
- सीख: इस हदीस से यह साफ़ जाहिर होता है कि अल्लाह के यहाँ जमात की नमाज़ का सवाब बहुत ज़्यादा है। हमें कोशिश करनी चाहिए कि हमेशा जमात के साथ नमाज़ पढ़ें, भले ही जमात छोटी ही क्यों न हो। यह न सिर्फ हमारे लिए ज्यादा सवाब का कारण है, बल्कि मुसलमानों के बीच एकता और भाईचारे को भी मजबूत करता है।

