इस्लाम में नमाज़ ईमान की पहचान और बंदे के अल्लाह से सीधे रिश्ता रखने का ज़रिया है। लेकिन कुछ नमाज़ें ऐसी हैं जो मुनाफ़िक़ों (दिखावे के मुसलमानों) पर बहुत भारी पड़ती हैं। आइए हदीस की रौशनी में जानते हैं कि वो दो नमाज़ें कौन सी हैं।
सवाल: वो कौन सी दो नमाज़ें हैं जो मुनाफ़िक़ों पर ज़्यादा भारी हैं?
- A. फ़ज्र और ज़ोहर
- B. फ़ज्र और अस्र
- C. फ़ज्र और मग़रिब
- D. फ़ज्र और ईशा
सही जवाब है: ऑप्शन D , फ़ज्र और ईशा
तफ़सील (विवरण):
📖 दलील:
बिस्मिल्लाह हिर रहमान निर रहीम
۞ हदीस:
उबय्य इब्न कअ’ब (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि रसोअल्लाह ﷺ ने फरमाया:
“ये दो नमाज़ें (फ़ज्र और ईशा) मुनाफ़िक़ों पर बहुत भारी हैं। अगर तुम जान लेते कि इन दो नमाज़ों का कितना सवाब है, तो तुम घुटनों के बल चलकर भी इन नमाज़ों के लिए मस्जिद पहुँचते।”
📕 सुनन अबू दाऊद, जिल्द 1, हदीस नं. 552 (हसन)
💭 सीख:
इस हदीस से हमें मालूम होता है कि फ़ज्र और ईशा की नमाज़ में सच्चे ईमान वालों की पहचान होती है। जो अल्लाह के लिए इन नमाज़ों को जमाअत से पढ़ने की कोशिश करता है, वो अल्लाह के नज़दीक मुक़र्रब बंदों में शामिल होता है। जबकि मुनाफ़िक़ इस वक्त की नमाज़ों में सुस्ती करते हैं या छोड़ देते हैं।



