इस्लाम ने औरतों को इबादत और नेकियों में हिस्सा लेने से नहीं रोका, बल्कि उन्हें भी अल्लाह की रहमत के मौकों पर शामिल होने की तालीम दी। ईद के दिन औरतों के ईदगाह जाने के बारे में रसोअल्लाह ﷺ का हुक्म बहुत अहम है। आइए हदीस की रौशनी में जानते हैं कि इस बारे में क्या फरमाया गया।
सवाल: रसोअल्लाह (ﷺ) ने औरतों के ईदगाह जाने के बारे में क्या फरमाया है?
- A. जाने का हुक्म दिया है
- B. मना फरमाया है
- C. ख़ामोशी इख़्तियार की है
- D. सही जवाब का इंतज़ार
सही जवाब है: ऑप्शन A , जाने का हुक्म दिया है
तफ़सील (विवरण):
📖 दलील:
बिस्मिल्लाह हिर रहमान निर रहीम
۞ हदीस:
हज़रत उम्मे अत्तिया (रज़ियल्लाहु अन्हा) से रिवायत है कि रसोअल्लाह ﷺ ने ईद-उल-फ़ितर और ईद-उल-अज़हा के दिन हमें और पर्दानशीन औरतों को निकलने का हुक्म दिया, और हायज़ा औरतों को नमाज़ से अलग रहकर भलाई और मुसलमानों की दुआ में शामिल होने का हुक्म दिया।
मैंने अर्ज़ किया, “या रसोअल्लाह ﷺ! हम में से जिसके पास चादर न हो तो?”
आप ﷺ ने फरमाया, “उसकी बहन अपनी चादर उसे पहना दे।”
📕 सहीह मुस्लिम, जिल्द 2, किताब 4, हदीस 2056
एक दूसरी रिवायत में उम्मे अत्तिया (रज़ि.) कहती हैं कि हमें रसोअल्लाह ﷺ ने हुक्म दिया कि कुवारी, जवान और पर्दे में रहने वाली औरतें ईद की नमाज़ के लिए जाएँ, और हायज़ा औरतें नमाज़ की जगह से अलग रहें।
📕 सहीह मुस्लिम, जिल्द 2, किताब 4, हदीस 2054
तीसरी रिवायत में उम्मे अत्तिया (रज़ि.) कहती हैं कि नबी ﷺ के ज़माने में हमें ईद के दिन ईदगाह जाने का हुक्म था, कुवारी लड़कियाँ और हायज़ा औरतें भी पर्दे में जाती थीं, मर्दों के पीछे तकबीर कहतीं और दुआ में शामिल होतीं।
📕 सहीह बुख़ारी, जिल्द 2, किताब 13, हदीस 971
चौथी रिवायत में उम्मे अत्तिया (रज़ि.) कहती हैं कि हमें हुक्म था कि जवान और पर्दानशीन औरतों को ईदगाह के लिए बाहर निकालें, और हायज़ा औरतें नमाज़ की जगह से अलग रहें।
📕 सहीह बुख़ारी, जिल्द 2, किताब 13, हदीस 974
💭 सीख:
इन हदीसों से यह साबित होता है कि औरतों को भी ईद के दिन ईदगाह जाकर तकबीर और दुआ में शामिल होने की तालीम दी गई है, ताकि वे भी इस दिन की बरकतों और रहमतों से हिस्सा ले सकें। इस्लाम औरतों के लिए इज़्ज़त, हया और बराबरी का पैग़ाम देता है।



