हम अक्सर मिलते वक्त “अस्सलामु अलैकुम” कहते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस्लाम में विदा होते वक्त भी सलाम देना एक सुन्नत और बहुत हसीन तरीका है? यह छोटा सा अमल न सिर्फ आपसी रिश्तों में मिठास घोलता है, बल्कि इसके पीछे पैगंबर मुहम्मद ﷺ की स्पष्ट हिदायत भी है। आइए जानते हैं कि जब दो मुसलमान एक-दूसरे से अलग हों, तो क्या कहना चाहिए।
सवाल: जब एक मुसलमान किसी दूसरे मुसलमान से जुदा हो तो उसको क्या कहना चाहिए?
- A. अल्लाह हाफिज
- B. अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू
- C. फी अमानिल्लाह
- D. मआस्सलामा
सही जवाब है: ऑप्शन B , अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू
तफ़सील (विवरण):
दलील:
इस सुन्नत तरीके का वर्णन हज़रत अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत एक सहीह हदीस में मिलता है। रसूलअल्लाह ﷺ ने फरमाया:
“जब तुम में से कोई शख़्स मजलिस (सभा/बैठक) में आए तो सलाम कहे, और तुम में से जब कोई मजलिस ख़त्म करके उठे तब भी सलाम कहे।”
📖 सुनन अबू दाऊद, हदीस 1765 (सहीह)
संक्षेप में समझें:
- सुन्नत तरीका: इस हदीस के मुताबिक, जब भी दो या ज़्यादा मुसलमान किसी मजलिस या मुलाकात से विदा लें, तो उन्हें एक-दूसरे को सलाम कहना चाहिए। यानी वही “अस्सलामु अलैकुम” जो मिलते वक्त कहा जाता है।
- पूरा सलाम: ज़्यादा अच्छा यह है कि पूरा सलाम कहा जाए: “अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू” (आप पर अल्लाह की शांति, उसकी दया और उसकी बरकतें हों)।
- मकसद: इससे मुलाकात का आरंभ और अंत दोनों ही अल्लाह के नाम और दुआ से होता है। यह भाईचारे और स्नेह को मजबूत करता है और यह याद दिलाता है कि हमारी हर सांस अल्लाह की अमानत में है।
- ध्यान रखें: “अल्लाह हाफिज” या “फी अमानिल्लाह” जैसे शब्द भी दुआ के तौर पर ठीक हैं, लेकिन सुन्नत का तरीका सलाम कहना है जैसा कि हदीस में बताया गया है। सलाम ही वह खास इस्लामी अभिवादन है जिसे मिलने और जुदा होने दोनों वक्त कहने का निर्देश है।



