इस्लाम हमें हर हाल में अल्लाह को याद करने की तालीम देता है, चाहे वह खुशी का वक़्त हो या ग़म का। जब भी किसी मोमिन पर कोई मुसीबत आती है, तो उसे एक ख़ास दुआ पढ़ने का हुक्म है जो सब्र और अल्लाह पर भरोसे को ज़ाहिर करती है। क्या आप जानते हैं वो दुआ क्या है और कब पढ़ी जाती है?
सवाल: ‘इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन’ मोमिन यह दुआ कब पढ़ता है?
- A. मुसीबत की घड़ी में
- B. घर में दाख़िल होने पर
- C. किसी के इंतकाल पर
- D. खाना खाने से पहले
सही जवाब है: ऑप्शन A , मुसीबत की घड़ी में
तफ़सील (विवरण):
सही जवाब की दलील सीधे तौर पर क़ुरान में मौजूद है, जहाँ अल्लाह ने मोमिनों की ख़ासियत के बारे में बताया है।
क़ुरान: अल्लाह तआला क़ुरान-ए-करीम में मोमिनों की सिफ़त के बारे में बयान करते हुए फ़रमाता है:
“वो लोग कि जब उन्हें कोई मुसीबत आती है तो कहते हैं: ‘इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन’ (हम तो अल्लाह के हैं और हम उसी की तरफ़ लौट कर जाने वाले हैं)। यही वो लोग हैं जिन पर उनके रब की तरफ़ से मेहरबानियां हैं और रहमत है, और यही लोग हिदायत पाने वाले हैं।”