क़ुरआन मजीद में कई ऐसी क़ौमें और घटनाएँ बयान की गई हैं जिनसे इंसान इबरत हासिल कर सके। उन्हीं में से एक है याजूज और माजूज का वाक़िया — जो क़यामत के करीब ज़मीन पर बड़े फसाद फैलाएँगे। आइए जानते हैं कि उनका ज़िक्र क़ुरआन की किस सूरह में किया गया है।
सवाल: इनमें से क़ुरआन की कौन-सी सूरह में याजूज-माजूज का क़िस्सा बयान किया गया है?
- A. सूरह या-सीन
- B. सूरह अल-बक़रह
- C. सूरह अल-क़सस
- D. सूरह अल-कहफ़
सही जवाब है: ऑप्शन D , सूरह अल-कहफ़
तफ़सील (विवरण):
📖 दलील
۞ बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम ۞
क़ुरआन:
“उन लोगों ने कहा: ज़ुलक़रनैन! याजूज और माजूज ज़मीन में फसाद मचाते रहते हैं। क्या हम आपके लिए कुछ माल जमा कर दें ताकि आप हमारे और उनके दरमियान एक मज़बूत दीवार बना दें?
(ज़ुलक़रनैन ने) कहा: ‘मुझे जो ताक़त और माल अल्लाह ने दिया है, वही काफी है। तुम बस अपनी ताक़त से मेरी मदद करो, मैं तुम्हारे और उनके बीच एक मजबूत रुकावट बना दूँगा।’”
📖 सूरह अल-कहफ़ (18), आयत 94–96
🌿 निष्कर्ष
याजूज और माजूज का ज़िक्र ज़ुलक़रनैन के वाक़िये के साथ आया है, जिसमें बताया गया है कि उन्होंने इन फसादी क़ौमों को रोकने के लिए एक मजबूत दीवार बनाई थी। यह वाक़िया इंसान को यह सिखाता है कि अल्लाह की दी हुई ताक़त का इस्तेमाल भलाई और अमन के लिए करना चाहिए।



