इस्लामी इतिहास में कुछ सहाबा-ए-किराम ऐसे हैं जिनकी बहादुरी और ईमानदारी की मिसालें आज तक दी जाती हैं। मगर क्या आप जानते हैं कि एक सहाबी ऐसे भी थे जिनके लिए ख़ुद नबी-ए-पाक ﷺ ने फरमाया —
“तुम पर मेरे माँ-बाप क़ुर्बान हों।”
आइए जानते हैं वो कौन ख़ुशनसीब सहाबी थे और ये अल्फ़ाज़ कब कहे गए।
सवाल: उस ख़ुशनसीब सहाबी का क्या नाम है जिनके लिए रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया था: “तुम पर मेरे माँ-बाप क़ुर्बान हों”?
- A. अबू बक्र सिद्दीक़ (रज़ि॰)
- B. मुआज़ बिन जबल (रज़ि॰)
- C. सअद बिन अबी वक़्क़ास (रज़ि॰)
- D. ख़ालिद बिन वलीद (रज़ि॰)
सही जवाब है: ऑप्शन C , सअद बिन अबी वक़्क़ास (रज़ि॰)
तफ़सील (विवरण):
📖 दलील
۞ बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम ۞
हदीस:
हज़रत अली (रज़ि॰) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ को किसी और के लिए अपने माँ-बाप क़ुर्बान करने का लफ़्ज़ नहीं कहते सुना गया, सिवाय सअद बिन अबी वक़्क़ास (रज़ि॰) के।
आप ﷺ ने फ़रमाया:
“ऐ सअद, तीर चलाओ! तुम पर मेरे माँ-बाप क़ुर्बान हों।”
यह बात ग़ज़वा-ए-उहुद के मौक़े पर फ़रमाई गई।
📕 सहीह बुख़ारी, जिल्द 7, हदीस 6184
📕 सहीह बुख़ारी, जिल्द 6, हदीस 4055
🕊️सीख
हज़रत सअद (रज़ि॰) की यह फज़ीलत हमें यह सिखाती है कि जो शख़्स अल्लाह और उसके रसूल के लिए ईमान और जिहाद में सच्चा होता है, अल्लाह तआला उसे दुनिया और आख़िरत दोनों में बुलंद मक़ाम देता है।



