उस ख़ुशनसीब सहाबी का क्या नाम है जिनके लिए रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया था: “तुम पर मेरे माँ-बाप क़ुर्बान हों”?
इस्लामी इतिहास में कुछ सहाबा-ए-किराम ऐसे हुए हैं जिनकी इज़्ज़त और मक़ाम फ़रिश्तों तक पहुँचा।
ऐसे ही एक महान सहाबी के बारे में रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया कि उनके जनाज़े को फ़रिश्ते उठा रहे थे — आइए जानते हैं वो कौन थे।
सवाल: कौन-से सहाबी के लिए रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया कि उनके जनाज़े को फ़रिश्ते उठा रहे थे?
- A. जाफ़र बिन अबू तालिब (रज़ि॰)
- B. मुआज़ बिन जबल (रज़ि॰)
- C. अबू बकर (रज़ि॰)
- D. सअद बिन मआज़ (रज़ि॰)
सही जवाब है: ऑप्शन D , सअद बिन मआज़ (रज़ि॰)
तफ़सील (विवरण):
📖 दलील
۞ बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम ۞
अनस बिन मालिक (रज़ि॰) से रिवायत है:
“जब सअद बिन मआज़ (रज़ि॰) का जनाज़ा उठाया गया तो मुनाफ़िक़ीन कहने लगे — ‘जनाज़ा कितना हल्का है, क्योंकि उन्होंने बनू क़ुरैज़ा के बारे में फ़ैसला दिया था।’
यह ख़बर रसूलुल्लाह ﷺ को मिली तो आपने फ़रमाया:
‘उनके जनाज़े को फ़रिश्ते उठा रहे थे (इसलिए वो हल्का था)।’”
📕 जामिउ तिर्मिज़ी, जिल्द 2, हदीस 1781 — सहीह
🕊️ सबक और सीख
यह हदीस इस बात का सबूत है कि जो बंदा अल्लाह की राह में इंसाफ़ और ईमानदारी से खड़ा होता है,
अल्लाह तआला उसे दुनिया और आख़िरत — दोनों जगह इज़्ज़त देता है।
सअद बिन मआज़ (रज़ि॰) का मक़ाम इतना बुलंद था कि उनके जनाज़े में फ़रिश्ते शरीक हुए।



