इस्लाम में नमाज़ (सलात) एक बहुत अहम इबादत है। यह सिर्फ़ अल्लाह से राब्ता (संबंध) का ज़रिया नहीं, बल्कि बंदे की ग़लतियों की तर्बियत (सुधार) का भी सबक देती है।
नमाज़ के दौरान अगर किसी इंसान से भूल या गलती हो जाए — चाहे वह कोई रुक्न (जैसे रुकू या सज्दा) छूट जाए या कोई काम ज़्यादा कर लिया जाए — तो इस गलती की तसहीह (सुधार) के लिए जो सज्दा किया जाता है, उसे “सज्दा-ए-सहव
“ कहा जाता है।
सवाल: कुरआन मजीद में कितने सज्दा-ए-सहव हैं?
- A. 14
- B. 7
- C. 3
- D. इनमें से कोई नहीं
सही जवाब है: ऑप्शन D , इनमें से कोई नहीं
तफ़सील (विवरण):
📜 दलील:
۞ बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम ۞
सज्दा-ए-सहव नमाज़ के अंदर किया जाता है, तिलावत (कुरआन पढ़ने) के दौरान नहीं।
जब नमाज़ में भूल या गलती हो जाए — जैसे कोई रुक्न छूट जाए या ज़्यादा हो जाए — तो उसकी तलफ़ी के लिए दो सज्दे किए जाते हैं, जिन्हें सज्दा-ए-सहव कहा जाता है।
लेकिन कुरआन मजीद में सज्दा-ए-सहव का ज़िक्र नहीं है, क्योंकि ये नमाज़ से संबंधित मसला है, न कि कुरआन की तिलावत से।
📖 याद रखिए:
तिलावत के वक़्त जो सज्दा किया जाता है उसे “सज्दा-ए-तिलावत” कहा जाता है, और कुरआन मजीद में कुल 14 सज्दा-ए-तिलावत बताए गए हैं।
💡 सीख:
➡️ सज्दा-ए-सहव — नमाज़ में भूल सुधारने के लिए होता है।
➡️ सज्दा-ए-तिलावत — कुरआन की तिलावत के दौरान विशेष आयतों पर किया जाता है।
इसलिए कुरआन में सज्दा-ए-सहव नहीं, बल्कि सज्दा-ए-तिलावत का ज़िक्र मिलता है।



