कौन-सा ज़िक्र कहने पर ये फरमाया गया है कि बंदे को जो दिया गया है, वो उस चीज़ से अफ़ज़ल है जो उसने ली है?

हम सब अपनी ज़िंदगी में अल्लाह की दी हुई नेमतों से घिरे हुए हैं — सांस, सेहत, खाना, घर, परिवार, ईमान। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जब इंसान “अलहम्दुलिल्लाह” कहता है तो यह सिर्फ शुक्र नहीं बल्कि एक ऐसा ज़िक्र है जो उस नेमत से भी अफ़ज़ल (बेहतर) है जो उसे मिली होती है।

सवाल: कौन-सा ज़िक्र कहने पर ये फरमाया गया है कि बंदे को जो दिया गया है, वो उस चीज़ से अफ़ज़ल है जो उसने ली है?

  • A. सुब्हानअल्लाह
  • B. हाज़ा मिन फज़ली रब्बी
  • C. अलहम्दुलिल्लाह
  • D. माशाअल्लाह

सही जवाब है: ऑप्शन C , अलहम्दुलिल्लाह

तफ़सील (विवरण):

📖 दलील (हदीस):

रसूलअल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया:

“जब अल्लाह सुब्हानहु अपने बंदे पर कोई नेमत नाज़िल फ़रमाता है और वह ‘अलहम्दुलिल्लाह’ कहता है, तो उसने जो कहा — वह उस चीज़ से अफ़ज़ल है जो उसे दी गई।”
📕 सुन्नन इब्न माजह, हदीस: 3805 — सहीह


🌸 सीख :

“अलहम्दुलिल्लाह” कहना सिर्फ ज़ुबान का ज़िक्र नहीं बल्कि शुक्र का इज़हार है। यह हमें याद दिलाता है कि नेमत का असली हक़दार अल्लाह है, और जब हम शुक्र अदा करते हैं तो अल्लाह हमें और ज़्यादा देता है (क़ुरान: इब्राहीम 14:7)।

🕋 शुक्रिया कहने की ताक़त: हर मुसलमान को चाहिए कि वह हर हाल में “अलहम्दुलिल्लाह” कहने की आदत डाले —

जब तकलीफ़ आए तो “अलहम्दुलिल्लाह ‘अला कुल्ली हाल”
क्योंकि अल्लाह अपने शुक्रगुज़ार बंदों से मोहब्बत करता है।

जब खुश हो तो “अलहम्दुलिल्लाह”

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