इंसान की फितरत में अच्छाई और बुराई दोनों के बीज मौजूद हैं। इस्लाम हमें हर तरह के गुनाह से बचने की ताकीद करता है, लेकिन साथ ही यह भी बताता है कि इंसान से कुछ कमजोरियाँ स्वाभाविक हैं। एक ऐसा ही बड़ा गुनाह है, जिसकी ओर लपकने की प्रवृत्ति हर इंसान में किसी न किसी रूप में मौजूद होती है। पैगंबर मुहम्मद ﷺ ने इसे बहुत साफ शब्दों में समझाया है।
सवाल: वो कौनसा गुनाह है जिसका कोई न कोई हिस्सा अल्लाह ने इंसान के लिए लिख दिया है?
- A. ज़िना
- B. सूद
- C. शिर्क
- D. बिदअत
सही जवाब है: ऑप्शन A , ज़िना
तफ़सील (विवरण):
दलील:
इस महत्वपूर्ण समझ का वर्णन हज़रत अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत एक सहीह हदीस में मिलता है। रसूलअल्लाह ﷺ ने फरमाया:
“अल्लाह ने इंसान के लिए ज़िना का एक हिस्सा लिख दिया है। आँख का ज़िना – ग़ैर महरम को देखना, ज़ुबान का ज़िना – ग़ैर महरम से बात करना, दिल का ज़िना – शहवत और ख्वाहिश, और शर्मगाह इसकी तस्दीक़ करती है या इनकार।”
📖 सहीह बुखारी, जिल्द 8, हदीस 6612
संक्षेप में समझें:
- गुनाह: ज़िना। लेकिन हदीस सिखाती है कि यह सिर्फ शारीरिक गुनाह तक सीमित नहीं है।
- हिस्से: ज़िना के कई चरण या हिस्से हैं, जो अक्सर शारीरिक गुनाह से पहले आते हैं और हर इंसान इनकी परीक्षा में पड़ सकता है:
- आँख का ज़िना: ग़ैर-महरम को शहवत की निगाह से देखना।
- ज़बान का ज़िना: फिजूल या शहवत भरी बातें करना।
- दिल का ज़िना: दिल में ग़ैर-महरम के लिए बुरी ख्वाहिश पालना।
- सीख: इस हदीस का मकसद यह नहीं है कि गुनाह को सामान्य बताया जाए, बल्कि यह है कि हमें गुनाह की शुरुआत ही रोक देनी चाहिए। अगर कोई व्यक्ति अपनी निगाह, अपनी ज़बान और अपने दिल पर काबू रखे, तो वह बड़े गुनाह तक पहुँचने से बच सकता है। यह एक चेतावनी है कि छोटी-छोटी बातें बड़े गुनाह का रास्ता खोलती हैं।



